टुक हिर्स ओ हवस को छोड़ मियां मत देस-विदेस फिरे मारा, कज्जाक अजल का लूटे है, दिन-रात बजाकर नक्कारा, क्या बधिया, भैसा, बैल, शुतुर, क्या गोने पल्ला सर भारा, क्या गेहूं, चावल, मोंठ, मटर, क्या आग-धुवा और अंगारा, सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा। गर तू है लक्खी बंजारा और खेप भी तेरी भारी है, एक गाफिल, तुझसे भी चतुरा, इक और बड़ा व्योपारी है, क्या शक्कर-मिस्री, कन्द, गरी, क्या सांभर मीठी खारी है, क्या दाख मुनक्के सोंठ, मिर्च, क्या केसर, लोंग, सुपारी है, सब ठाठ पड़ा, रह जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा। तू बधिया लावे बैल भरे, जो पूरब पश्छिम जावेगा, या सूद बढ़ाकर लावेगा, या टोटा-घाटा पावेगा, कज्जाक अजल का रस्ते में, जब भाला मार गिरावेगा, धन-दौलत, नाती, पोता क्या, इक कुनबा काम न आवेगा, सब ठाठ पड़ा रहा जावेगा, जब लाद चलेगा बंजारा। हर मंजिल में अब साथ तेरे, ये जितना डेरा-डांडा है, जर, दाम, दिरम का भांडा है, बन्दूक, सिपर और खांडा है, जब नायक तन का निकल गया, जो मुल्कों-मुल्कों हांडा है, फिर हांडा है ना भांडा है, ना हलवा है ना भांडा है, सब ठाठ पड़ा रह जावेगा, जब लाद चलेगा ब
इस ब्लॉग में मैं चुनिन्दा कवितायेँ पोस्ट करूंगा. इनमे से हर कविता ने कहीं न कहीं मेरे मन को छुआ होगा