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पानी ने दूध से मित्रता की ......

पानी ने दूध से मित्रता की और उसमे समा गया.. जब दूध ने पानी का समर्पण देखा तो उसने कहा- मित्र ! तुमने अपने स्वरुप का त्यागकर मेरे स्वरुप को धारण किया है.... अब मैं भी मित्रता निभाऊंगा और तुम्हे अपने मोल बिकवाऊंगा । दूध बिकने के बाद जब उसे उबाला जाता है तब पानी कहता है.. अब मेरी बारी है मै मित्रता निभाऊंगा और तुमसे पहले मै चला जाऊँगा.. दूध से पहले पानी उड़ता जाता है जब दूध मित्र को अलग होते देखता है तो उफन कर गिरता है और आग को बुझाने लगता है, जब पानी की बूंदे उस पर छींट कर उसे अपने मित्र से मिलाया जाता है तब वह फिर शांत हो जाता है। पर इस अगाध प्रेम में.. थोड़ी सी खटास- (निम्बू की दो चार बूँद) डाल दी जाए तो दूध और पानी अलग हो जाते हैं.. थोड़ी सी मन की खटास अटूट प्रेम को भी मिटा सकती है । रिश्ते में.. खटास मत आने दो ॥ "क्या फर्क पड़ता है, हमारे पास कितने लाख, कितने करोड़, कितने घर, कितनी गाड़ियां हैं, खाना तो बस दो ही रोटी है । जीना तो बस एक ही ज़िन्दगी है । फर्क इस बात से पड़ता है, कितने पल हमने ख़ुशी से बिताये, कितने लोग हमारी वजह से खुशी से जिये । (Taken from Face