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आज जाने की ज़िद ना करो ....

यू tube : https://www.youtube.com/watch?v=hBvdIsBmQ6g फरीदा खानम साहिबा का यह गीत बड़ा सम्मोहक है. श्रृंगार रस से ओतप्रोत यह गीत, बड़ा “suggestive” है. शब्दों के बीच में फरीदा जी एक ऐसा भाव व्यक्त कर दे रही हैं जो किसी को भी आकर्षित कर ले. इस गीत की खूबसूरती यही है कि कुछ प्रत्यक्ष नहीं कहा जा रहा है. बस एक संकेत दिया जा रहा है; यह संकेत बड़ा feminine है, बड़ा प्रलोभी है, और जानबूझ कर दिया जा रहा है! कोई भूल न करे; यह मासूम प्रेम का गीत नहीं है और न ही विरह का गीत है !! बहुत ही खूब गाया है!!

मनुष्य और सर्प (कवि : श्री रामधारी सिंह दिनकर)

चल रहा महाभारत का रण, जल रहा धरित्री का सुहाग। फट कुरुक्षेत्र में खेल रही, नर के भीतर की कुटिल आग।।  वाजियों-गजों की लोथों में, गिर रहे मनुज के छिन्न अंग। बह रहा चतुष्पद और द्विपद का, रुधिर मिश्र हो एक संग।। गत्वर, गैरेय सुघर भूधर से, लिए रक्त-रंजित शरीर। थे जूझ रहे कौंतेय-कर्ण, क्षण-क्षण करते गर्जन गंभीर।। दोनों रण-कुशल धनुर्धर नर, दोनों सम बल, दोनों समर्थ। दोनों पर दोनों की अमोघ, थी विशिख वृष्टि हो रही व्यर्थ।। इतने में शर के लिए कर्ण ने, देखा ज्यों अपना निषंग । तरकस में से फुंकार उठा, कोई प्रचंड विषधर भुजंग।।  कहता कि कर्ण ! मैं अश्वसेन, विश्रुत भुजंगों का स्वामी हूँ। जन्म से पार्थ का शत्रु परम, तेरा बहुविधि हितकामी हूँ।। बस एक बार कर कृपा, धनुष पर चढ़ शख्य तक जाने दे। इस महाशत्रु को अभी तुरत, स्पंदन में मुझे सुलाने दे।। कर वमन गरल जीवन-भर का, संचित प्रतिशोध, उतारूँगा। तू मुझे सहारा दे, बढ़कर मैं अभी पार्थ को मारूँगा।। राधेय ज़रा हँसकर बोला, रे कुटिल ! बात क्या कहता है? जय का समस्त साधन नर का, अपनी बाहों में रहता है।। उस पर भी साँप

रसिक बलमा

https://www.youtube.com/watch?v=QF1lNr-LniI रसिक बलमा, हाय दिल क्यों लगाया, तोसे दिल क्यों लगाया, जैसे रोग लगाया जैसे रोग लगाया…रसिक बलमा….. Amazing rendering by Lata ji. One of few songs where Mukhda and Antara both are riveting. Note the tenderness in the voice of Lataji as first Antara begins, signalling a woman in deep love. नायिका प्रेम में विवश, अपनी कारुणिक दशा का विवरण कर रही है. (सूरत वो प्यारी प्यारी) - The hero is described as a fleeting lover (रसिक, possibly insincere), but she still recalls his handsome personality हसरत जयपुरी लिखते हैं - " नेहा (स्नेह, अर्थात प्रेम) लगा के हारी" प्रेम ही ऐसा अनोखा भाव है जहाँ "हार" को भी व्यक्ति मधुर भाव से स्वीकार लेता है, "मैं" का भाव पीछे हो जाता है, और प्रियतम ही सब कुछ हो जाता है. और भी कई भाव हैं जो शब्दातीत हैं. अभी मेरी सुई अटक गयी है, और बार बार इसी गीत को सुने जा रहा हूँ.