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सबकी बात न माना कर - कुंवर बेचैन

सबकी बात न माना कर खुद को भी पहचाना कर दुनिया से लड़ना है तो अपनी ओर निशाना कर या तो मुझसे आकर मिल या मुझको दीवाना कर बारिश में औरों पर भी अपनी छतरी ताना कर बाहर दिल की बात न ला दिल को भी तहखाना कर शहरों में हलचल ही रख मत इनको वीराना कर कुंवर बेचैन