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अंजामे गुलिस्तां क्या होगा

बरबाद गुलिस्तां करने को  बस एक ही उल्लू काफ़ी  था हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्तां क्या होगा - unknown

तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक़ है तुमको......

तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक़ है तुमको मेरी बात और है मैंने तो मुहब्बत की है मेरे दिल की मेरे जज़बात की कीमत क्या है उलझे-उलझे से ख्यालात की कीमत क्या है मैंने क्यूं प्यार किया तुमने न क्यूं प्यार किया इन परेशान सवालात कि कीमत क्या है तुम जो ये भी न बताओ तो ये हक़ है तुमको मेरी बात और है मैंने तो मुहब्बत की है तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक़ है तुमको ज़िन्दगी सिर्फ़ मुहब्बत नहीं कुछ और भी है ज़ुल्फ़-ओ-रुख़सार की जन्नत नहीं कुछ और भी है भूख और प्यास की मारी हुई इस दुनिया में इश्क़ ही एक हक़ीकत नहीं कुछ और भी है तुम अगर आँख चुराओ तो ये हक़ है तुमको मैंने तुमसे ही नहीं सबसे मुहब्बत की है तुम अगर आँख चुराओ तो ये हक़ है तुमको तुमको दुनिया के ग़म-ओ-दर्द से फ़ुरसत ना सही सबसे उलफ़त सही मुझसे ही मुहब्बत ना सही मैं तुम्हारी हूँ यही मेरे लिये क्या कम है तुम मेरे होके रहो ये मेरी क़िस्मत ना सही और भी दिल को जलाओ ये हक़ है तुमको मेरी बात और है मैंने तो मुहब्बत की है तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक़ है तुमको (श्री साहिर लुधियानवी)

माँ (सुनील जोगी कृत)

किसी की ख़ातिर अल्‍ला होगा, किसी की ख़ातिर राम लेकिन अपनी ख़ातिर तो है, माँ ही चारों धाम जब आँख खुली तो अम्‍मा की गोदी का एक सहारा था उसका नन्‍हा-सा आँचल मुझको भूमण्‍डल से प्‍यारा था उसके चेहरे की झलक देख चेहरा फूलों-सा खिलता था उसके स्‍तन की एक बूंद से मुझको जीवन मिलता था हाथों से बालों को नोचा, पैरों से खूब प्रहार किया फिर भी उस माँ ने पुचकारा हमको जी भर के प्‍यार किया मैं उसका राजा बेटा था वो आँख का तारा कहती थी मैं बनूँ बुढ़ापे में उसका बस एक सहारा कहती थी उंगली को पकड़ चलाया था पढ़ने विद्यालय भेजा था मेरी नादानी को भी निज अन्‍तर में सदा सहेजा था मेरे सारे प्रश्‍नों का वो फौरन जवाब बन जाती थी मेरी राहों के काँटे चुन वो ख़ुद ग़ुलाब बन जाती थी मैं बड़ा हुआ तो कॉलेज से इक रोग प्‍यार का ले आया जिस दिल में माँ की मूरत थी वो रामकली को दे आया शादी की, पति से बाप बना, अपने रिश्‍तों में झूल गया अब करवाचौथ मनाता हूँ माँ की ममता को भूल गया हम भूल गए उसकी ममता, मेरे जीवन की थाती थी हम भूल गए अपना जीवन, वो अमृत वाली छाती थी हम भूल गए वो ख़ुद भूखी रह करके हमें खिलाती थी हमको सूखा बिस्‍तर

मुश्किल है अपना मेल प्रिये (सुनील जोगी)

मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये । तुम एम. ए. फ़र्स्ट डिवीजन हो, मैं हुआ मैट्रिक फ़ेल प्रिये । मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये । तुम फौजी अफ़्सर की बेटी, मैं तो किसान का बेटा हूँ । तुम रबडी खीर मलाई हो, मैं सत्तू सपरेटा हूँ । तुम ए. सी. घर में रहती हो, मैं पेड के नीचे लेटा हूँ । तुम नयी मारूती लगती हो, मैं स्कूटर लम्बरेटा हूँ । इस कदर अगर हम छुप-छुप कर, आपस मे प्रेम बढायेंगे । तो एक रोज़ तेरे डैडी अमरीश पुरी बन जायेंगे । सब हड्डी पसली तोड मुझे, भिजवा देंगे वो जेल प्रिये । मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये । तुम अरब देश की घोडी हो, मैं हूँ गदहे की नाल प्रिये । तुम दीवाली का बोनस हो, मैं भूखों की हडताल प्रिये । तुम हीरे जड़ी तश्तरी हो, मैं एल्मुनिअम का थाल प्रिये । तुम चिकेन-सूप बिरयानी हो, मैं कंकड वाली दाल प्रिये । तुम हिरन-चौकडी भरती हो, मैं हूँ कछुए की चाल प्रिये । तुम चन्दन-वन की लकडी हो, मैं हूँ बबूल की चाल प्रिये । मैं पके आम सा लटका हूँ, मत मार मुझे गुलेल प्रिये । मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल