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मुहाजिर नामा (मुन्नवर राणा ) Muhajir Nama - By Munawwar Rana

मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं, तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं । कहानी का ये हिस्सा आज तक सब से छुपाया है, कि हम मिट्टी की ख़ातिर अपना सोना छोड़ आए हैं । नई दुनिया बसा लेने की इक कमज़ोर चाहत में, पुराने घर की दहलीज़ों को सूना छोड़ आए हैं । अक़ीदत से कलाई पर जो इक बच्ची ने बाँधी थी, वो राखी छोड़ आए हैं वो रिश्ता छोड़ आए हैं । जो इक पतली सड़क उन्नाव से मोहान जाती है, वहीं हसरत के ख़्वाबों को भटकता छोड़ आए हैं । यक़ीं आता नहीं, लगता है कच्ची नींद में शायद, हम अपना घर गली अपना मोहल्ला छोड़ आए हैं । हमारे लौट आने की दुआएँ करता रहता है, हम अपनी छत पे जो चिड़ियों का जत्था छोड़ आए हैं । हमें हिजरत की इस अन्धी गुफ़ा में याद आता है, अजन्ता छोड़ आए हैं एलोरा छोड़ आए हैं । सभी त्योहार मिलजुल कर मनाते थे वहाँ जब थे, दिवाली छोड़ आए हैं दशहरा छोड़ आए हैं । हमें सूरज की किरनें इस लिए तक़लीफ़ देती हैं, अवध की शाम काशी का सवेरा छोड़ आए हैं । गले मिलती हुई नदियाँ गले मिलते हुए मज़हब, इलाहाबाद में कैसा नज़ारा छोड़ आए हैं । हम अपने साथ तस्वीरें तो ले आए

पूरा दुख और आधा चाँद....

पूरा दुख और आधा चाँद हिज्र की शब और ऐसा चाँद इतने घने बादल के पीछे कितना तन्हा होगा चाँद मेरी करवट पर जाग उठे नींद का कितना कच्चा चाँद सहरा सहरा भटक रहा है अपने इश्क़ में सच्चा चाँद रात के शायद एक बजे हैं सोता होगा मेरा चाँद (स्वर्गीय सुश्री परवीन शाकिर)