मुहाजिर हैं मगर हम एक दुनिया छोड़ आए हैं, तुम्हारे पास जितना है हम उतना छोड़ आए हैं । कहानी का ये हिस्सा आज तक सब से छुपाया है, कि हम मिट्टी की ख़ातिर अपना सोना छोड़ आए हैं । नई दुनिया बसा लेने की इक कमज़ोर चाहत में, पुराने घर की दहलीज़ों को सूना छोड़ आए हैं । अक़ीदत से कलाई पर जो इक बच्ची ने बाँधी थी, वो राखी छोड़ आए हैं वो रिश्ता छोड़ आए हैं । जो इक पतली सड़क उन्नाव से मोहान जाती है, वहीं हसरत के ख़्वाबों को भटकता छोड़ आए हैं । यक़ीं आता नहीं, लगता है कच्ची नींद में शायद, हम अपना घर गली अपना मोहल्ला छोड़ आए हैं । हमारे लौट आने की दुआएँ करता रहता है, हम अपनी छत पे जो चिड़ियों का जत्था छोड़ आए हैं । हमें हिजरत की इस अन्धी गुफ़ा में याद आता है, अजन्ता छोड़ आए हैं एलोरा छोड़ आए हैं । सभी त्योहार मिलजुल कर मनाते थे वहाँ जब थे, दिवाली छोड़ आए हैं दशहरा छोड़ आए हैं । हमें सूरज की किरनें इस लिए तक़लीफ़ देती हैं, अवध की शाम काशी का सवेरा छोड़ आए हैं । गले मिलती हुई नदियाँ गले मिलते हुए मज़हब, इलाहाबाद में कैसा नज़ारा छोड़ आए हैं । हम अपने साथ तस्वीरें तो ले आए
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें