छिप-छिप अश्रु बहाने वालों, मोती व्यर्थ बहाने वालों कुछ सपनों के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है। सपना क्या है, नयन सेज पर, सोया हुआ आँख का पानी और टूटना है उसका ज्यों, जागे कच्ची नींद जवानी गीली उमर बनाने वालों, डूबे बिना नहाने वालों कुछ पानी के बह जाने से, सावन नहीं मरा करता है। खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर, केवल जिल्द बदलती पोथी जैसे रात उतार चांदनी, पहने सुबह धूप की धोती वस्त्र बदलकर आने वालों! चाल बदलकर जाने वालों! चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है। लाखों बार गगरियाँ फूटीं, शिकन न आई पनघट पर, लाखों बार किश्तियाँ डूबीं, चहल-पहल वो ही है तट पर, तम की उमर बढ़ाने वालों! लौ की आयु घटाने वालों! लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है। लूट लिया माली ने उपवन, लुटी न लेकिन गन्ध फूल की, तूफानों तक ने छेड़ा पर, खिड़की बन्द न हुई धूल की, नफरत गले लगाने वालों! सब पर धूल उड़ाने वालों! कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है!
मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायौ । मोसौ कहत मोल कौ लीन्हौ, तू जसुमति कब जायौ ? कहा करौं इहि रिस के मारैं खेलन हौं नहिं जात । पुनि-पुनि कहत कौन है माता को है तेरौ तात ॥ गोरे नंद जसोदा गोरी, तू कत स्यामल गात । चुटुकी दै-दै ग्वाल नवावत, हँसत, सबै मुसुकात ॥ तू मोही कौं मारन सीखी, दाउहि कबहुँ न खीझै । मोहन-मुख रिस की ये बातैं, जसुमति सुनि-सुनि रीझै ॥ सुनहु कान्ह, बलभद्र चबाई, जनमत ही कौ धूत । सूर स्याम मोहि गोधन की सौं, हौं माता तू पूत ॥ भावार्थ :-- (बालक श्रीकृष्ण कह रहे हैं-) माँ ! दाऊ भैया (बलराम जी) ने मुझे बहुत चिढ़ाया है । वे मुझसे कहते हैं-तुझे तो खरीदा गया था, तू यशोदा मैया का पुत्र थोड़े ही है। माँ, क्या करूँ, इस बात पर मुझे बड़ा क्रोध आता है, इसी कारण मैं खेलने भी नहीं जाता । दाऊ बार-बार कहते हैं - तेरी माँ कौन है ? तेरे पिता कौन हैं ? नन्दबाबा तो गोरे हैं, यशोदा मैया भी गोरी हैं, तू कैसे साँवले अंग वाला हो गया ? बाकी ग्वाल बाल भी मेरे ऊपर इस बात पर हँसते हैं । (बालक कृष्ण अपना गुस्सा माँ पर निकालते हुए कहते हैं ) माँ तू भी हमेशा मुझे ही मारती रहती है, दाऊ पर कभी गुस्सा भी न