किसी की ख़ातिर अल्ला होगा, किसी की ख़ातिर राम लेकिन अपनी ख़ातिर तो है, माँ ही चारों धाम जब आँख खुली तो अम्मा की गोदी का एक सहारा था उसका नन्हा-सा आँचल मुझको भूमण्डल से प्यारा था उसके चेहरे की झलक देख चेहरा फूलों-सा खिलता था उसके स्तन की एक बूंद से मुझको जीवन मिलता था हाथों से बालों को नोचा, पैरों से खूब प्रहार किया फिर भी उस माँ ने पुचकारा हमको जी भर के प्यार किया मैं उसका राजा बेटा था वो आँख का तारा कहती थी मैं बनूँ बुढ़ापे में उसका बस एक सहारा कहती थी उंगली को पकड़ चलाया था पढ़ने विद्यालय भेजा था मेरी नादानी को भी निज अन्तर में सदा सहेजा था मेरे सारे प्रश्नों का वो फौरन जवाब बन जाती थी मेरी राहों के काँटे चुन वो ख़ुद ग़ुलाब बन जाती थी मैं बड़ा हुआ तो कॉलेज से इक रोग प्यार का ले आया जिस दिल में माँ की मूरत थी वो रामकली को दे आया शादी की, पति से बाप बना, अपने रिश्तों में झूल गया अब करवाचौथ मनाता हूँ माँ की ममता को भूल गया हम भूल गए उसकी ममता, मेरे जीवन की थाती थी हम भूल गए अपना जीवन, वो अमृत वाली छाती थी हम भूल गए वो ख़ुद भूखी रह करके हमें खिलाती थी हमको सूखा बिस्तर ...
इस ब्लॉग में मैं चुनिन्दा कवितायेँ पोस्ट करूंगा. इनमे से हर कविता ने कहीं न कहीं मेरे मन को छुआ होगा