वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो के न याद हो| वही यानी वादा निभा का तुम्हें याद हो के न याद हो| वो नये गिले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिकायतें, वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो के न याद हो| कोई बात ऐसी अगर हुई जो तुम्हारे जी को बुरी लगी, तो बयाँ से पहले ही भूलना तुम्हें याद हो के न याद हो| सुनो ज़िक्र है कई साल का, कोई वादा मुझ से था आप का, वो निभाने का तो ज़िक्र क्या, तुम्हें याद हो के न याद हो| कभी हम में तुम में भी चाह थी, कभी हम से तुम से भी राह थी, कभी हम भी तुम भी थे आश्ना, तुम्हें याद हो के न याद हो| हुए इत्तेफ़ाक़ से गर बहम, वो वफ़ा जताने को दम-ब-दम, गिला-ए-मलामत-ए-अर्क़बा, तुम्हें याद हो के न याद हो| वो जो लुत्फ़ मुझ पे थे बेश्तर, वो करम के हाथ मेरे हाथ पर, मुझे सब हैं याद ज़रा ज़रा, तुम्हें याद नो कि न याद हो| कभी बैठे सब हैं जो रू-ब-रू तो इशारतों ही से गुफ़्तगू, वो बयान शौक़ का बरमला तुम्हें याद हो कि न याद हो| वो बिगड़ना वस्ल की रात का, वो न मानना किसी बात का, वो नहीं नहीं की हर आन अदा, तुम्हें याद हो कि न याद हो| जिसे आप गिनते थ...
इस ब्लॉग में मैं चुनिन्दा कवितायेँ पोस्ट करूंगा. इनमे से हर कविता ने कहीं न कहीं मेरे मन को छुआ होगा