शुक्रवार, 17 मार्च 2017

आवत ही हरषै नहीं...(गोस्वामी तुलसीदास)



आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह ।
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह ।।


अर्थ: जिस जगह आपके जाने से लोग प्रसन्न नहीं होते हों, जहाँ लोगों की आँखों में आपके लिए प्रेम या स्नेह ना हो, वहाँ हमें कभी नहीं जाना चाहिए, चाहे वहाँ धन की बारिश ही क्यों न हो रही हो ।

1 टिप्पणियाँ:

यहां 5 अगस्त 2021 को 11:46 am बजे, Blogger Skdixiy ने कहा…

मानस में उक्त प्रसंग किस स्थान या कांड में है

 

एक टिप्पणी भेजें

सदस्यता लें टिप्पणियाँ भेजें [Atom]

<< मुख्यपृष्ठ