ज़िन्दगी में तो सभी प्यार किया करते हैं
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा
तू मिला है तो एहसास हुआ है मुझको
ये मेरी उम्र मोहब्बत के लिए थोड़ी है
इक ज़रा सा गम-ए-दौरा का भी हक है जिसपर
मैंने वो सांस भी तेरे लिए रख छोड़ी है
तुझपे हो जाऊंगा कुर्बान तुझे चाहूँगा
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा
अपने जज़्बात में नगमात रचाने के लिए
मैंने धड़कन की तरह दिल में बसाया है तुझे
मैं तसव्वुर भी जुदाई का भला कैसे करूं
मैंने किम्सत की लकीरों से चुराया है तुझे
प्यार का बन के निगेहबान तुझे चाहूँगा
अपने जज़्बात में नगमात रचाने के लिए
मैंने धड़कन की तरह दिल में बसाया है तुझे
मैं तसव्वुर भी जुदाई का भला कैसे करूं
मैंने किम्सत की लकीरों से चुराया है तुझे
प्यार का बन के निगेहबान तुझे चाहूँगा
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा
तेरी हर चाप से जलते हैं ख़यालों में चिराग़
जब भी तू आये जगाता हुआ जादू आये
तुझको छू लूँ तो फ़िर ए जान-ए-तमन्ना मुझको
देर तक अपने बदन से तेरी ख़ुशबू आये
तू बहारों का है उनवान तुझे चाहूँगा
तेरी हर चाप से जलते हैं ख़यालों में चिराग़
जब भी तू आये जगाता हुआ जादू आये
तुझको छू लूँ तो फ़िर ए जान-ए-तमन्ना मुझको
देर तक अपने बदन से तेरी ख़ुशबू आये
तू बहारों का है उनवान तुझे चाहूँगा
मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूँगा
-- क़तील शिफ़ाई
-- क़तील शिफ़ाई
This Ghazal was immortalized by Janab Mehdi Hassan in his sublime voice (Film: Azmat)
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