रविवार, 1 दिसंबर 2013

चेतक गाथा

रण बीच चौकड़ी भर-भर कर
चेतक बन गया निराला था
राणा प्रताप के घोड़े से
पड़ गया हवा का पाला था

जो तनिक हवा से बाग हिली
लेकर सवार उड जाता था
राणा की पुतली फिरी नहीं
तब तक चेतक मुड जाता था

गिरता न कभी चेतक तन पर
राणा प्रताप का कोड़ा था
वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर
वह आसमान का घोड़ा था

कौशल दिखलाया चालों में
उड़ गया भयानक भालों में
निर्भीक गया वो ढालों में
सरपट दौड़ा करवालों में

है यहीं रहा अब यहाँ नहीं
है वहीँ रहा अब वहां नहीं
थी जगह न कोई जहाँ नहीं
किस अरि-मस्तक पर कहाँ नहीं

निर्भीक गया वह ढालों में
सरपट दौडा करबालों में
फँस गया शत्रु की चालों में

बढते नद सा वह लहर गया
फिर गया गया फिर ठहर गया
बिकराल बज्रमय बादल सा
अरि की सेना पर घहर गया।

भाला गिर गया गिरा निशंग
हय टापों से खन गया अंग
बैरी समाज रह गया दंग
घोड़े का ऐसा देख रंग

(श्री श्याम नारायण पाण्डेय)

1 टिप्पणियाँ:

यहां 18 सितंबर 2018 को 12:23 pm बजे, Blogger News99 ने कहा…

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