बुधवार, 30 नवंबर 2011

ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे - अहमद फ़राज़

ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे

हमसफर चाहिए, हुजूम नहीं
एक मुसाफिर भी काफिला है मुझे

तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे

कौन जाने की चाहतों में फ़राज़!
क्या गंवाया है क्या मिला है मुझे!!

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