तुम्हीं मिटाओ मेरी उलझन कैसे कहूँ कि तुम कैसी हो
कोई नहीं सृष्टि में तुमसा माँ तुम बिल्कुल माँ जैसी हो
ब्रह्मा तो केवल रचता है तुम तो पालन भी करती हो
शिव हरते तो सब हर लेते तुम चुन चुन पीड़ा हरती हो
किसे सामने खड़ा करूं मैं और कहूं फिर तुम ऐंसी हो।।
ज्ञानी बुद्ध प्रेम बिन सूखे सारे देव भक्ति के भूखे
ज्ञानी बुद्ध प्रेम बिन सूखे सारे देव भक्ति के भूखे
लगते हैं तेरी तुलना में ममता बिन सब रूखे रूखे
पूजा करे सताये कोई सब की सदा तुम हितैषी हो।।
कितनी गहरी है अद् भुत सी तेरी यह करुणा की गागर
कितनी गहरी है अद् भुत सी तेरी यह करुणा की गागर
जाने क्यों छोटा लगता है तेरे आगे करुणा सागर
जाकी रहि भावना जैसी मूरत देखी तिन्ह तैंसी हो।।
मेरी लघु आकुलता से ही कितनी व्याकुल हो जाती हो
मेरी लघु आकुलता से ही कितनी व्याकुल हो जाती हो
मुझे तृप्त करने के सुख में तुम भूखी ही सो जाती हो
सब जग बदला मैं भी बदला तुम तो वैसी की वैसी हो।।
तुम से तन मन जीवन पाया तुमने ही चलना सिखलाया
तुम से तन मन जीवन पाया तुमने ही चलना सिखलाया
पर देखो मेरी कृतघ्नता काम तुम्हारे कभी नआया
क्यों करती हो क्षमा हमेशा तुम भी तो जाने कैसी हो
माँ तुम बिल्कुल माँ जैसी हो।।
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