सोमवार, 7 मार्च 2011

वो जो हम में तुम में क़रार था - मोमिन

वो जो हम में तुम में क़रार था तुम्हें याद हो के न याद हो|
वही यानी वादा निभा का तुम्हें याद हो के न याद हो|

वो नये गिले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिकायतें,
वो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो के न याद हो|

कोई बात ऐसी अगर हुई जो तुम्हारे जी को बुरी लगी,
तो बयाँ से पहले ही भूलना तुम्हें याद हो के न याद हो|

सुनो ज़िक्र है कई साल का, कोई वादा मुझ से था आप का,
वो निभाने का तो ज़िक्र क्या, तुम्हें याद हो के न याद हो|

कभी हम में तुम में भी चाह थी, कभी हम से तुम से भी राह थी,
कभी हम भी तुम भी थे आश्ना, तुम्हें याद हो के न याद हो|

हुए इत्तेफ़ाक़ से गर बहम, वो वफ़ा जताने को दम-ब-दम,
गिला-ए-मलामत-ए-अर्क़बा, तुम्हें याद हो के न याद हो|

वो जो लुत्फ़ मुझ पे थे बेश्तर, वो करम के हाथ मेरे हाथ पर,
मुझे सब हैं याद ज़रा ज़रा, तुम्हें याद नो कि न याद हो|

कभी बैठे सब हैं जो रू-ब-रू तो इशारतों ही से गुफ़्तगू,
वो बयान शौक़ का बरमला तुम्हें याद हो कि न याद हो|

वो बिगड़ना वस्ल की रात का, वो न मानना किसी बात का,
वो नहीं नहीं की हर आन अदा, तुम्हें याद हो कि न याद हो|

जिसे आप गिनते थे आश्ना जिसे आप कहते थे बावफ़ा,
मैं वही हूँ "मोमिन"-ए-मुब्तला तुम्हें याद हो के न याद हो|

शनिवार, 5 मार्च 2011

आग का दरिया है - जिगर मुरादाबादी

इक लफ़्ज़े-मोहब्बत का अदना ये फ़साना है
सिमटे तो दिल-ए-आशिक़ फैले तो ज़माना है

ये किसका तसव्वुर है ये किसका फ़साना है
जो अश्क है आँखों में तस्बीह का दाना है

हम इश्क़ के मारों का इतना ही फ़साना है
रोने को नहीं कोई हँसने को ज़माना है

वो और वफ़ा-दुश्मन मानेंगे न माना है
सब दिल की शरारत है आँखों का बहाना है

क्या हुस्न ने समझा है क्या इश्क़ ने जाना है
हम ख़ाक-नशीनों की ठोकर में ज़माना है

वो हुस्न-ओ-जमाल उनका ये इश्क़-ओ-शबाब अपना
जीने की तमन्ना है मरने का ज़माना है

या वो थे ख़फ़ा हमसे या हम थे ख़फ़ा उनसे
कल उनका ज़माना था आज अपना ज़माना है

अश्कों के तबस्सुम में आहों के तरन्नुम में
मासूम मोहब्बत का मासूम फ़साना है

आँखों में नमी-सी है चुप-चुप-से वो बैठे हैं
नाज़ुक-सी निगाहों में नाज़ुक-सा फ़साना है

ऐ इश्क़े-जुनूँ-पेशा हाँ इश्क़े-जुनूँ-पेशा
आज एक सितमगर को हँस-हँस के रुलाना है

ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना तो समझ लीजे
एक आग का दरिया है और डूब के जाना है

आँसू तो बहुत से हैं आँखों में 'जिगर' लेकिन
बिँध जाये सो मोती है रह जाये सो दाना है 

जिगर मुरादाबादी